प्रिय मित्रो आप सब को नवरत्रि और विजय दसमी की शुभकामनाये
" है " का संग ही वास्तविक सत्संग है "करने" मे सावधन "होने" मे प्रसन्न रहने पर " है " की प्रीति स्वत: प्राप्त होती है। तभी नव जिवन की सफ़लता पुर्ण होती है। यही वास्तविक " जीवन " है, जो सभी मानव की मांग है।---इस ब्लाँग पर जो भी सामाग्री है वह संतो, महात्माओ एवं गुरुओ के द्वारा प्राप्त प्रसाद है, ग्रहण करे॥
रविवार, 20 सितंबर 2009
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
सत्संगमहिमा
सत्संग्त्वे निहसंग्त्वं
निहसंगत्वे निर्मोहत्वं
निर्मोहत्वे निश्चल तत्वं
निश्चल्तत्वे जिवन मुक्ति:
मन्त्र का अर्थ है:-
जो (शरीर-सन्सार)अपना नही है, उसे अपना स्वीकार न करना सत्संग है और जो (प्रभु) अपना है, उसे अपना स्विकार करना भी सत्संग है।
सत्संग से व्यक्ति,वस्तु,अवस्था, प्रिस्थिती मे आकर्षण न रहना - यह असंगता (नि:संगता) है। इससे क्रमसश: निर्मोहत्व (नीर्ममता)और निश्चलता की प्राप्ती होती है जो जिवनमुक्ती (अमरत्व) का बोध है।
नोट: सत्संग का फ़ल युगपत् होता है अर्थत वर्तमान मे ही होता है। इसलिए स्वयं साधन काल मे परखते रहना चाहिए कि शरीर और संसार से असंगता का अनुभव हो रहा है या नही।
पुनश्च
निहसंगत्वे निर्मोहत्वं
निर्मोहत्वे निश्चल तत्वं
निश्चल्तत्वे जिवन मुक्ति:
मन्त्र का अर्थ है:-
जो (शरीर-सन्सार)अपना नही है, उसे अपना स्वीकार न करना सत्संग है और जो (प्रभु) अपना है, उसे अपना स्विकार करना भी सत्संग है।
सत्संग से व्यक्ति,वस्तु,अवस्था, प्रिस्थिती मे आकर्षण न रहना - यह असंगता (नि:संगता) है। इससे क्रमसश: निर्मोहत्व (नीर्ममता)और निश्चलता की प्राप्ती होती है जो जिवनमुक्ती (अमरत्व) का बोध है।
नोट: सत्संग का फ़ल युगपत् होता है अर्थत वर्तमान मे ही होता है। इसलिए स्वयं साधन काल मे परखते रहना चाहिए कि शरीर और संसार से असंगता का अनुभव हो रहा है या नही।
पुनश्च
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