" है " का संग ही वास्तविक सत्संग है "करने" मे सावधन "होने" मे प्रसन्न रहने पर " है " की प्रीति स्वत: प्राप्त होती है। तभी नव जिवन की सफ़लता पुर्ण होती है। यही वास्तविक " जीवन " है, जो सभी मानव की मांग है।---इस ब्लाँग पर जो भी सामाग्री है वह संतो, महात्माओ एवं गुरुओ के द्वारा प्राप्त प्रसाद है, ग्रहण करे॥
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