आत्मानि प्रतिकुलानि -------न समाचरेत________
जो वर्ताव, बात, विचार, व्यवहार अपने लिए उचित या हितकारी या रुचिकर नही है, वह दुसरो के साथ कदापि नहीकरने से, सत्संग होता है जो सर्वांगीण विकास मे हेतु है जिससे शान्ति और सद्भाव उत्पन्न होगा, शान्ति से योग, योग से सामर्थता और सद्भाव से प्रसन्नता, जिससे निस्काम हो कर नि:संकल्पता स्वत: आयेगी और स्वरूप मेस्थिति हो जायेगी, स्वरुप मे अविचल स्थित रहने पर अमरत्व का बोध होगा जो कि जीवन मुक्ति है अर्थातवास्तविक जिवन है, जिसकी प्राप्ति सभी मानव का लक्ष है जो कि संभव है साधन करने पर, अर्थात आचरण हीसच्चा साधन है ।
जै सच्चिदानन्द
यह वाणी अपने परम प्रिय को समर्पित,
अस्तु सुभं
बहुत बढिया शैली पसंद आई,आगे भी लिखे,
जवाब देंहटाएंआप का स्वागत करते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित हूँ कि आपने ब्लॉग जगत में पदार्पण किया है. आप ब्लॉग जगत को अपने सार्थक लेखन कार्य से आलोकित करेंगे. इसी आशा के साथ आपको बधाई.
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं,
http://lalitdotcom.blogspot.com
bog jagat me swagat aur shubhkamnaye
जवाब देंहटाएंaap ne to gajab kar diya.narayan narayan
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है। ब्लाग जगत मैं स्वागतम्।
जवाब देंहटाएंstyanveshi ka swagat.
जवाब देंहटाएंUttam.Apaka swagat hai.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंGreat, A deep spirituality in your writing makes words worthwhile.
जवाब देंहटाएंThanks for your posts.
सत्संग का सही अर्थ बताने के लिए धन्यवाद ।
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